गोधूलि भाग 2 Class 10 Chapter 1 Question Answer PDF
बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी “गोधूली भाग 2” के प्रश्न उत्तर (Chapter Solutions) इस पेज पर उपलब्ध हैं।
इस पेज में आपको “गोधूली भाग 2” के अध्याय 1 – “श्रम विभाजन और जाति प्रथा” के सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर मिलेंगे। यह बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी के छात्रों के लिए एक उपयोगी अध्ययन सामग्री है, जो परीक्षा की तैयारी में सहायता करेगी।
सभी उत्तर पाठ्यपुस्तक के अनुसार सरल एवं सटीक रूप में दिए गए हैं, जिससे छात्र आसानी से समझ सकें और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।
यदि आप Class 10 Hindi Godhuli Part 2 के अन्य अध्यायों के भी Question Answer खोज रहे हैं, तो यह पेज आपके लिए उपयोगी रहेगा। सभी उत्तर BSEB Class 10 Hindi परीक्षा पैटर्न के अनुसार तैयार किए गए हैं।
गोधूलि भाग 2 Class 10 Chapter 1 Question Answer PDF
इस सेक्शन में चैप्टर 1 में दिए गये सभी प्रश्नों का हल (उत्तर) दिया गया है |
प्रश्न 1: लेखक किस विडंबना की बात करते हैं? विडंबना का स्वरूप क्या है?
उत्तर: लेखक इस विडंबना की ओर संकेत करते हैं कि आधुनिक युग में भी जातिवाद के समर्थकों की कोई कमी नहीं है। जातिवाद के पोषक इसे समाज के लिए उपयोगी मानते हैं और इसका समर्थन करते हैं, जबकि यह सामाजिक भेदभाव और असमानता को जन्म देता है। विडंबना यह है कि जाति प्रथा को श्रम विभाजन के रूप में उचित ठहराने का प्रयास किया जाता है, जबकि यह न केवल श्रमिकों को अस्वाभाविक रूप से विभाजित करती है, बल्कि उनमें ऊँच-नीच का भेद भी स्थापित करती है।
प्रश्न 2: जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर: जातिवाद के पोषक इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हैं:
- वे कहते हैं कि आधुनिक समाज में कार्य कुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है और जाति प्रथा भी इसी का एक रूप है।
- उनका मानना है कि जाति प्रथा एक व्यवस्थित सामाजिक संरचना प्रदान करती है, जिसमें हर व्यक्ति का एक निश्चित कार्य निर्धारित होता है।
- उनका तर्क है कि जाति प्रथा के कारण समाज में स्थिरता बनी रहती है और इससे कार्यों का सुचारू रूप से संचालन संभव होता है।
प्रश्न 3: जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक की प्रमुख आपत्तियाँ क्या हैं?
उत्तर: लेखक जातिवाद के समर्थन में दिए गए तर्कों पर निम्नलिखित आपत्तियाँ उठाते हैं:
- जाति प्रथा केवल श्रम विभाजन नहीं है, बल्कि यह श्रमिक विभाजन भी करती है, जिससे समाज में असमानता उत्पन्न होती है।
- यह व्यक्ति की रुचि और क्षमता को महत्व नहीं देती, बल्कि जन्म के आधार पर उसका पेशा तय कर देती है।
- जाति प्रथा एक कठोर व्यवस्था है, जो व्यक्ति को जीवनभर एक ही कार्य करने के लिए बाध्य कर देती है, भले ही वह उसमें निपुण हो या नहीं।
- यह सामाजिक गतिशीलता को रोकती है और व्यक्ति को अपने इच्छित कार्य क्षेत्र में जाने से वंचित कर देती है।
प्रश्न 4: जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती?
उत्तर: जाति प्रथा को भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं कहा जा सकता क्योंकि:
- यह व्यक्ति की स्वाभाविक रुचि और योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि जन्म के आधार पर श्रम का निर्धारण करती है।
- यह पेशे के चुनाव की स्वतंत्रता नहीं देती, जिससे व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य नहीं कर सकता।
- इसमें ऊँच-नीच का भाव निहित है, जिससे समाज में भेदभाव और असमानता बढ़ती है।
- यह व्यक्तिगत विकास और कार्य-कुशलता को बाधित करती है, जिससे समाज की प्रगति धीमी हो जाती है।
प्रश्न 5: जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है?
उत्तर: जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण इसलिए बनी हुई है क्योंकि:
- यह व्यक्ति को केवल उसके पारंपरिक पेशे तक सीमित रखती है, जिससे वह नए अवसरों का लाभ नहीं उठा पाता।
- उद्योग और तकनीकी क्षेत्रों में लगातार बदलाव होते रहते हैं, लेकिन जाति प्रथा के कारण लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय से हटकर अन्य कार्य नहीं कर सकते।
- अगर किसी व्यक्ति का पारंपरिक व्यवसाय समाप्त हो जाता है, तो उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं रहता और वह बेरोजगारी का शिकार हो जाता है।
- व्यक्ति की योग्यता और क्षमता के बावजूद उसे केवल जन्म के आधार पर कार्य करने की बाध्यता होती है, जिससे उसकी प्रतिभा का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता।
प्रश्न 6: लेखक आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या किसे मानते हैं और क्यों?
उत्तर: लेखक के अनुसार, आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या यह है कि लोग अपने कार्य में रुचि नहीं लेते और विवशतावश कार्य करते हैं। जाति प्रथा के कारण मनुष्य का कार्य पहले से तय कर दिया जाता है, जिससे वह मनमर्जी का पेशा नहीं अपना सकता। यह स्थिति न केवल श्रमिकों की कार्य कुशलता को प्रभावित करती है, बल्कि आर्थिक विकास में भी बाधा उत्पन्न करती है।
प्रश्न 7: लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है?
उत्तर: लेखक ने जाति प्रथा को निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं से हानिकारक बताया है:
- यह जन्म के आधार पर श्रमिकों का विभाजन करती है, जिससे सामाजिक असमानता उत्पन्न होती है।
- यह व्यक्ति की स्वतंत्रता छीन लेती है और उसे जीवनभर एक ही कार्य में बाँध देती है।
- यह आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न करती है, क्योंकि यह व्यक्ति की कार्य-कुशलता और योग्यता को विकसित नहीं होने देती।
- यह बेरोजगारी को बढ़ावा देती है, क्योंकि पेशे के परिवर्तन की अनुमति नहीं देती।
प्रश्न 8: सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को आवश्यक माना है?
उत्तर: लेखक के अनुसार, सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए निम्नलिखित विशेषताएँ आवश्यक हैं:
- लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं, बल्कि समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का माध्यम होना चाहिए।
- सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने चाहिए, ताकि समाज में भ्रातृत्व की भावना विकसित हो सके।
- हर व्यक्ति को स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व का अधिकार मिलना चाहिए, ताकि समाज में समानता बनी रहे।
- लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपने साथियों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव रखना चाहिए।
गोधूलि भाग 2 Class 10 Chapter 1 Model Question Answer
इस सेक्शन में चैप्टर 1 के लिए कुछ मॉडल क्वेश्चन का आंसर दिया गया है | यह प्रश्न हमने बनाया है और आपके इस चैप्टर पर आधारित है |
प्रश्न 1: लेखक किस विडंबना की बात करते हैं?
उत्तर: लेखक इस विडंबना की बात करते हैं कि आधुनिक समाज में भी जातिवाद बना हुआ है। लोग इसे श्रम विभाजन का एक रूप मानते हैं, जबकि यह एक अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था है। यह विडंबना है कि जाति प्रथा के समर्थक इसे समाज के लिए आवश्यक बताते हैं, जबकि यह समानता और प्रगति में बाधा डालती है।
प्रश्न 2: जातिवाद के समर्थक इसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर: जातिवाद के समर्थकों का तर्क है कि यह श्रम विभाजन का एक प्राकृतिक स्वरूप है। उनका मानना है कि इससे कार्य कुशलता बनी रहती है और समाज व्यवस्थित रहता है। हालांकि, लेखक इस तर्क का खंडन करते हैं क्योंकि जाति प्रथा व्यक्ति की योग्यता और रुचि की अनदेखी करती है।
प्रश्न 3: जाति प्रथा और श्रम विभाजन में क्या अंतर है?
उत्तर: जाति प्रथा जन्म आधारित होती है, जबकि श्रम विभाजन योग्यता और रुचि पर आधारित होता है। जाति प्रथा में व्यक्ति को अपने पूर्वजों के कार्य को ही अपनाना पड़ता है, जबकि श्रम विभाजन में वह अपनी पसंद का पेशा चुन सकता है।
प्रश्न 4: जाति प्रथा को स्वाभाविक श्रम विभाजन क्यों नहीं कहा जा सकता?
उत्तर: जाति प्रथा को स्वाभाविक श्रम विभाजन नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह व्यक्ति की प्रतिभा और रुचि की उपेक्षा करती है। यह जन्म के आधार पर तय होती है, जबकि श्रम विभाजन योग्यता और शिक्षा के आधार पर होता है।
प्रश्न 5: जाति प्रथा में व्यक्ति अपनी पसंद का काम क्यों नहीं चुन सकता?
उत्तर: जाति प्रथा में जन्म के आधार पर कार्य निर्धारित किया जाता है। व्यक्ति को अपनी जाति के अनुसार ही कार्य करना पड़ता है, भले ही उसकी रुचि और क्षमता किसी अन्य कार्य में हो। यह उसके विकास को बाधित करता है।
प्रश्न 6: जाति प्रथा बेरोजगारी को कैसे बढ़ाती है?
उत्तर: जाति प्रथा बेरोजगारी को इसलिए बढ़ाती है क्योंकि यह लोगों को उनके पैतृक पेशे तक सीमित कर देती है। यदि किसी व्यक्ति की जाति के अनुसार निर्धारित कार्य के क्षेत्र में अवसर कम हैं, तो वह बेरोजगार रह जाता है, जबकि उसकी प्रतिभा किसी अन्य क्षेत्र में हो सकती है।
प्रश्न 7: जाति प्रथा से काम की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर: जाति प्रथा के कारण लोग अपनी रुचि और योग्यता के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते। इससे कार्य की गुणवत्ता प्रभावित होती है क्योंकि व्यक्ति जबरदस्ती अपने पैतृक कार्य को करने के लिए बाध्य होता है, भले ही वह उसमें कुशल न हो।
प्रश्न 8: लेखक के अनुसार, जाति प्रथा इंसान की मेहनत और प्रेरणा को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर: लेखक के अनुसार, जाति प्रथा इंसान की मेहनत और प्रेरणा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है क्योंकि यह उसे एक निश्चित कार्य तक सीमित कर देती है। व्यक्ति चाहे जितनी भी मेहनत करे, वह अपनी जाति के दायरे से बाहर नहीं निकल सकता, जिससे उसकी प्रगति रुक जाती है।
प्रश्न 9: लेखक ने आदर्श समाज की क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर: लेखक के अनुसार, आदर्श समाज वह है जहां व्यक्ति की योग्यता और क्षमता के अनुसार उसे कार्य करने की स्वतंत्रता हो। वहां सभी को समान अवसर मिलें और जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो।
प्रश्न 10: लोकतंत्र और जाति प्रथा एक साथ क्यों नहीं चल सकते?
उत्तर: लोकतंत्र समानता और स्वतंत्रता पर आधारित होता है, जबकि जाति प्रथा ऊँच-नीच और भेदभाव को बढ़ावा देती है। इसलिए, ये दोनों एक साथ नहीं चल सकते। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को समान अधिकार मिलने चाहिए, जो जाति प्रथा में संभव नहीं है।
प्रश्न 11: लेखक ने समाज में भाईचारे (भ्रातृत्व) का क्या अर्थ बताया है?
उत्तर: लेखक के अनुसार, भ्रातृत्व का अर्थ है समाज में समानता और सौहार्द बनाए रखना। जाति प्रथा इस भावना को नष्ट कर देती है क्योंकि यह लोगों को ऊँच-नीच में विभाजित करती है, जिससे सामाजिक एकता कमजोर होती है।
प्रश्न 12: जाति प्रथा के कारण लोग जबरदस्ती अपने पैतृक काम को क्यों करने पर मजबूर होते हैं?
उत्तर: जाति प्रथा में व्यक्ति को जन्म के आधार पर कार्य निर्धारित किया जाता है। समाज की परंपराओं और दबाव के कारण लोग अपने पैतृक पेशे को अपनाने के लिए बाध्य होते हैं, भले ही वे उसमें रुचि न रखते हों।
प्रश्न 13: जाति प्रथा से समाज में कौन-कौन सी समस्याएँ पैदा होती हैं?
उत्तर: जाति प्रथा के कारण समाज में असमानता, भेदभाव और आर्थिक असंतुलन जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यह लोगों को उनकी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने से रोकती है और समाज की प्रगति में बाधा डालती है।
प्रश्न 14: जाति प्रथा के कारण नए उद्योगों और व्यवसायों पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर: जाति प्रथा के कारण कई लोग अपनी जाति के अनुसार पारंपरिक कार्यों तक सीमित रहते हैं। इससे नए उद्योगों और व्यवसायों को कुशल श्रमिक नहीं मिल पाते, जिससे आर्थिक विकास बाधित होता है।
प्रश्न 15: लेखक ने जाति प्रथा को खत्म करने के लिए क्या सुझाव दिए हैं?
उत्तर: लेखक ने जाति प्रथा को खत्म करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक सुधार को आवश्यक बताया है। उन्होंने सुझाव दिया कि लोगों को उनकी योग्यता और रुचि के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और जाति के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना चाहिए।
गोधूलि भाग 2 Class 10 Chapter 1 Exercise Questions
इस सेक्शन में हमने आपके अभ्यास के लिए कुछ अतिरिक्त प्रश्न दिया है | आप इन प्रश्नों का उत्तर लिखने का अभ्यास करें | अगर आप चाहें तो इन प्रश्नों के उत्तर हमारे कमेंट बॉक्स में भी दे सकते हैं | हम आपके उत्तर की कमियों को चेक करके उसमें सुधार करने के उपाय बताएँगे |
बोध और अभ्यास – अतिरिक्त प्रश्न
- लेखक जाति प्रथा को अन्यायपूर्ण क्यों मानते हैं?
- जाति प्रथा किस प्रकार सामाजिक बंधनों को मजबूत करती है?
- भारतीय समाज में जाति प्रथा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
- जाति प्रथा का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- जाति प्रथा के कारण समाज में आर्थिक असमानता क्यों बढ़ती है?
- श्रम विभाजन को जाति प्रथा से जोड़ना क्यों गलत है?
- जाति प्रथा से व्यक्ति की प्रतिभा और योग्यता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- जाति प्रथा किस प्रकार समाज में भेदभाव को जन्म देती है?
- जाति प्रथा से महिला सशक्तिकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा कौन-कौन से प्रयास किए गए हैं?
- जाति आधारित पेशों के कारण समाज में कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
- लेखक के अनुसार, जाति प्रथा का अंत क्यों आवश्यक है?
- आधुनिक समाज में जाति प्रथा किस रूप में मौजूद है?
- जाति प्रथा का औद्योगीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- जाति प्रथा के कारण समाज में पिछड़ेपन की समस्या क्यों बनी रहती है?
गोधूलि भाग 2 Class 10 Chapter 1 Summary PDF
अध्याय का सारांश:
डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित “श्रम विभाजन और जाति प्रथा” नामक यह लेख भारतीय समाज में जाति प्रथा की विसंगतियों और हानिकारक प्रभावों को उजागर करता है। लेखक जातिवाद के समर्थकों द्वारा दिए गए तर्कों को खंडित करते हुए यह सिद्ध करते हैं कि जाति प्रथा केवल श्रम विभाजन का साधन नहीं है, बल्कि यह श्रमिकों को अस्वाभाविक रूप से विभाजित करके सामाजिक असमानता को जन्म देती है।
जातिवाद के समर्थकों का मानना है कि यह प्रथा समाज में कार्य-कुशलता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह लोगों को विशेष कार्यों के लिए आरंभ से ही तैयार करती है। लेकिन लेखक इस तर्क का खंडन करते हुए बताते हैं कि जाति प्रथा केवल श्रम का विभाजन नहीं करती, बल्कि यह लोगों को जन्म से ही एक निश्चित पेशे में बाँध देती है, जिससे उनकी व्यक्तिगत रुचि और योग्यता का कोई महत्व नहीं रह जाता।
जाति प्रथा के दोष | प्रभाव |
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पेशा जन्म से निर्धारित होना | व्यक्ति की रुचि और योग्यता की अनदेखी |
ऊँच-नीच का भेदभाव | सामाजिक असमानता और संघर्ष |
पेशा बदलने की मनाही | बेरोजगारी और आर्थिक संकट |
सामाजिक गतिशीलता की कमी | लोकतंत्र के मूल्यों का हनन |
लेखक यह भी बताते हैं कि जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है। आधुनिक समाज में तकनीकी विकास के कारण कार्यों में लगातार परिवर्तन हो रहा है, जिससे व्यक्ति को अपने कार्य में बदलाव करने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन जाति प्रथा के कारण लोग अपने पैतृक व्यवसाय तक ही सीमित रह जाते हैं, चाहे वे उसमें निपुण हों या न हों। इससे न केवल व्यक्ति बल्कि समाज की आर्थिक प्रगति भी बाधित होती है।
जाति प्रथा की हानिकारक प्रकृति को दर्शाने के लिए लेखक निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर बल देते हैं:
- यह व्यक्ति की स्वाभाविक प्रेरणा को दबाती है और उसे अपने पसंद के कार्य करने से रोकती है।
- यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है और लोगों में ऊँच-नीच की भावना विकसित करती है।
- यह लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध जाती है, क्योंकि इसमें समानता और स्वतंत्रता का अभाव रहता है।
- यह आर्थिक प्रगति में बाधक बनती है, क्योंकि यह प्रतिभाशाली लोगों को अपने कार्यक्षेत्र में जाने से रोकती है।
अंततः, अंबेडकर एक आदर्श समाज की कल्पना प्रस्तुत करते हैं, जहाँ स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व के सिद्धांतों का पालन किया जाता है। उनके अनुसार, सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए निम्नलिखित विशेषताएँ आवश्यक हैं:
- हर व्यक्ति को अपनी योग्यता और रुचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता हो।
- समाज में सभी को समान अवसर प्राप्त हों और किसी के साथ भेदभाव न किया जाए।
- लोकतंत्र केवल शासन की एक प्रणाली न होकर एक सामाजिक जीवन पद्धति हो।
- लोगों के बीच भ्रातृत्व की भावना हो, जिससे वे एक-दूसरे का सम्मान कर सकें।
इस प्रकार, डॉ. अंबेडकर जाति प्रथा को केवल सामाजिक अन्याय का प्रतीक ही नहीं, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए भी बाधक बताते हैं। वे जाति प्रथा के स्थान पर एक ऐसे समाज की वकालत करते हैं, जहाँ समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा हो, जिससे समाज का समुचित विकास हो सके।
गोधूलि भाग 2 Class 10 Chapter 1 Write Introduction (Jivan Parichay)
डॉ. भीमराव अंबेडकर: जीवन परिचय
डॉ. भीमराव अंबेडकर (1891-1956) भारतीय समाज के प्रमुख सुधारकों में से एक थे, जिन्होंने सामाजिक समानता, मानवाधिकार और न्याय की स्थापना के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। वे एक महान विधिवेत्ता, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, लेखक और भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पकार थे।
नाम | डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर |
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जन्म | 14 अप्रैल 1891, महू (मध्य प्रदेश) |
मृत्यु | 6 दिसंबर 1956, नई दिल्ली |
उपाधि | भारत रत्न (1990, मरणोपरांत) |
प्रसिद्धि | भारतीय संविधान के निर्माता, समाज सुधारक, दलित उद्धारक |
धर्म परिवर्तन | बौद्ध धर्म (1956) |
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा:
डॉ. अंबेडकर का जन्म एक गरीब अछूत महार परिवार में हुआ था, जहाँ उन्हें बचपन से ही सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सतारा और मुंबई में हुई। इसके बाद, वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए और प्रतिष्ठित संस्थानों से डिग्रियाँ प्राप्त कीं।
- 🎓 एलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई से स्नातक।
- 🎓 कोलंबिया विश्वविद्यालय, अमेरिका से एम.ए. और पीएच.डी।
- 🎓 लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डी.एससी।
- ⚖️ ग्रेज़ इन, लंदन से बैरिस्टर की उपाधि।
सामाजिक सुधार और संघर्ष:
डॉ. अंबेडकर ने भारत में सामाजिक अन्याय और जातिगत भेदभाव के विरुद्ध कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। वे समाज में समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व की स्थापना के पक्षधर थे।
संघर्ष | विवरण |
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मनुस्मृति दहन (1927) | जातिगत भेदभाव के विरोध में मनुस्मृति की प्रतियाँ जलाईं। |
महाड़ सत्याग्रह (1927) | अछूतों को सार्वजनिक जल स्रोतों का उपयोग करने का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन। |
नासिक सत्याग्रह (1930) | दलितों को मंदिरों में प्रवेश दिलाने के लिए संघर्ष। |
पूना समझौता (1932) | गांधीजी के साथ समझौता कर दलितों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था को बदलवाया। |
बौद्ध धर्म ग्रहण (1956) | हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया। |
संविधान निर्माण और राजनीतिक योगदान:
डॉ. अंबेडकर संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे और उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय समाज में न्याय, समानता और बंधुत्व को स्थापित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को संविधान में शामिल करवाया।
- सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर देने का समर्थन।
- अस्पृश्यता उन्मूलन और दलितों को आरक्षण प्रदान करवाया।
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की अवधारणा को मजबूत किया।
- धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकारों को भारतीय संविधान का आधार बनाया।
डॉ. अंबेडकर की प्रमुख कृतियाँ:
- 📖 एनीहिलेशन ऑफ कास्ट (जाति का विनाश)
- 📖 द बुद्ध एंड हिज़ धम्मा (बुद्ध और उनका धम्म)
- 📖 थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स
- 📖 द प्रॉब्लम ऑफ रूपी
- 📖 कास्ट्स इन इंडिया: देयर मेकैनिज्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट
निधन और विरासत:
डॉ. अंबेडकर का 6 दिसंबर 1956 को निधन हो गया, लेकिन उनका योगदान भारतीय समाज और संविधान में सदा अमर रहेगा। उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आज भी वे लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उनके विचारों पर अनुसरण किया जाता है।
🚀 डॉ. अंबेडकर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और सामाजिक समानता के लिए उनकी संघर्षशील भावना हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। 🙏
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निष्कर्ष:
इस पेज में हमने बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी गोधूली भाग 2 के अध्याय “श्रम विभाजन और जाति प्रथा” के सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर (Chapter Solutions) उपलब्ध कराए हैं। ये उत्तर छात्रों को पाठ को गहराई से समझने और परीक्षा की बेहतर तैयारी में मदद करेंगे।
यदि आप BSEB Class 10 Hindi के अन्य अध्यायों के Question Answer भी चाहते हैं, तो हमारे अन्य पेज देखें। नियमित अभ्यास और सही अध्ययन सामग्री से आप अपनी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।
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